Monday, 1 August 2022

मृग और मैं


कस्तूरी तो है मृग में,

ढूढ़ रहा वह बन बन में,

ऐसे ही मैं ढूढ़ रही,

खुद को इस बीहड़ बन में।

            मृग का बन तो हरा भरा है,

            उसका साथी साथ खड़ा है,

            मैं तो एकल खड़ी हुई हूं,

            इस ज़न मानस के सागर में।

कस्तूरी की गंध से, 

सुध बुध खो जब, 

मृग कानन कानन फिरता, 

पक्षियों के मधुर कलरव में, 

प्रकृति की रंगीन छटा में, 

बन की सुंदरता में आसक्त, 

अपने को धन्य पता। 

               इतना जनमानस,

               फिर भी एकल, 

               कोलाहल में खोजता एकांत, 

               बिरक्त नहीं आसक्त हो, 

               मनः शांति की कामना करता, 

               विरोधाभास का जीवन, 

               हे मानस तू क्यूँ है जीता??

               हे मानस तू क्यूँ है जीता??

ज्योत्सना पंत

Friday, 29 July 2022

श्रद्धांजलि


ईजा 

ईजा की बहुत याद आती है तेरी ,

तेरे इस नश्वर शरीर को छोड़ने की,

की थी कामना बहुत मैंने,

तेरे मानसिक शारीरिक कष्ट देख,

मन बहुत घबराता था,

तूने कभी ना हार मानी,

परिस्थितियों से लड़ना कैसे,

ये करके दिखलाया था,

कब तूने सोचा अपने बारे में,

बस कह देती थी, 

तुम सब मेरे हो,

तो जो किया तुम्हारे लिए,

वो भी तो मेरा स्वार्थ था,

निर्मल मन और सद्भाव से,

सेवा सबकी करती रही,

उलाहना सहीं पर सदा मुस्काती रही,

उस मुस्कान के पीछे,

कितने दर्द छुपे थे,

ये ना बताया किसीको,

सब अपने साथ ले गयी, 

छोड़ गयी बस यादें।।

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अश्रु युक्त भावभीनी श्रद्धांजलि स्वीकार करना
ज्योत्सना 

Sunday, 22 May 2022

ओ मंद मंद बहती पवन


।ओ मंद मंद बहती पवन।


ऊंचे ऊंचे पर्वतों के ,

लहलहाते खेतों को ,

स्पर्श करके आती,

जन्म भूमि की गंध युक्त,

ओ मंद मंद बहती पवन,

बचपन का स्मरण कराती,

आज मुझको इतना बता दे,

जीवन स्वप्न है या तथ्य?

खुले नयनों से मधुर स्वप्न देखूँ,

स्वप्न की दुनिया में डूबी,

अतीत की यादों में खोयी,

मन ही मन मुस्काऊं,

ओ सुगन्धित पवन,

तू मंद मंद बहती रह,

मुझे स्वप्न नगरी में रहने दे,

बहुत मधुर है तेरा स्पर्श

इस मधुर मधु को पीने दे।

रहने दे! आज सत्य ना बता,

स्वप्न लोक में ही रहने दे,

स्वप्न में ही सही,

मुझे रोमांचित होने दे,

अपने मधुर स्पर्श से देवभूमि की,

उन ऊँचीं श्रृंखलाओं का भ्रमण करने दे।

ओ मंद मंद बहती पवन,

स्वर्ग सी अनुभूति होती,

तेरे चंचल आलिंगन से,

विनती तुमसे करती हूँ,

विदा ले के जाती हो तो जाओ,

इतना तुम बस कर देना,

आद्रित नेत्र,

औ' कम्पित होठों से,

याद करती हूँ तुम्हें मैं,

यह

जन्म भूमि से कह देना,

तुम देव भूमि से कह देना।


Thursday, 7 April 2022

मैं और मेरा साया



 
मैं और मेरा साया

है ये साया इतना लंबा,

रहता मेरे साथ सदा,

अरे अपने तो कबके छोड़ गए,

इसने अब तक क्यूँ है,

इसने दामन थमा।


सूरज ढलता देख,

उसे भी शायद विचार आया,

क्यूँ कर इसका साथ दूँ अब,

और उसका स्वरूप बदला,

बदली उसकी माया।


कहाँ लुप्त हुआ वह,

ढूँढती हूं रात्री के अंधकार में,

पूर्णिमा की रात्रि में जब मिलता,

प्रसन्नता से निर्लिप्त हो,

प्रफुल्लित हो जाती मैं।


पूर्णिमा थी एक रात की,

सूरज आता केवल दिन में,

साये का क्या आए जाए,

रूप बदल कर,

फिर अन्धकार में,

छोड़ मुझे चला जाए।


माया मोह भी एक साया है,

इसने किसको सुख दिया,

करो जीवन को कमल पत्र सा,

जो नदी में रह कर भी ना डूबा,

सदा अडिग रह नीर की हर बूंद को,

अपने वक्षस्थल में ले मणींद्र बना,

स्वयं का सौंदर्य भी बढ़ा लिया।

ज्योत्सना पंत। 


Saturday, 2 April 2022

नव संवत्सर का उपहार


             किस पक्षी ने खाया फल,

             डाल बीज़ माटी में चला गया,

             बांस के बीच उगा देख,

             उसे गमले में मैंने लगा लिया।

कोई बोला पीपल ना लगाओ घर पर,

अशुभ होगा मानो मेरा कहना,

पर एक ना मैंने मानी,

उस पीपल के पौधे को, 

बोनसाई बनाने की ठानी।

                  सोचा नारायण जिस वृक्ष में रहते,

                  वो क्या अशुभ फल देगा, 

                  चलो इसी बहाने नारायण का, 

                  मेरे घर में वास होगा। 

जल अर्पण कर,

नमन अर्पण कर, 

नित्य उनसे कहती,

वृक्ष महोदय सूख ना जाना, 

विनती तुमसे करती।

                 नित्य एक पीपल पत्ता,

                 मेरे कोमल मन को,

                आघात दे त्रस्त कर, 

                पृथ्वी पर गिर जाता। 

अब देखो मेरा कहा ना माना, 

पीपल तुमने सूखा दिया, 

अनहोनी ना हो कोई, 

यह कह कर उसने मुँह फिरा लिया। 

                        शंकित मन था, 

                        कुछ भय भी था, 

                        पर जल चढ़ा, 

                        नमन कर विनती करना ना छोड़ा। 

फिर नव वर्ष के द्वार, 

चैत्र मास ने  खोले,  

तो पीपल मेरा बोला, 

अरे पगली सूखा ना था, 

नयन मूंद अपने अंतर्मन में, 

तुझे धन्यवाद् देता था, 

आज चैत्र मास आया, 

इन नन्हें कोमल, 

हरे गुलाबी पत्ते ले, 

नव वर्ष की शुभकामनाएं, 

ब्रह्म मुहुर्त में मैं तुझे देने आया। 

               मेरा पीपल पुनः हरा हुआ, 

               पत्तों से सुसज्जित उसको, 

                मैंने पाया, 

                गद गद हो हाथ जोड़, 

                इतने अद्भुत सुन्दर, 

                नव वर्ष के उपहार का, 

                आभार मैंने जताया। 

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Wednesday, 30 March 2022

Serenity


Serenity

O my troubled mind,

Let me have,

Bit of peace. 

                You fear the fear,

                That invisible thing, 

                That lurks around, 

                Makes you go, 

                Round and round, 

                In the depth of darkness, 

                Unsettling me. 

I long for the serenity, 

O My troubled mind, 

Calm down. 

                    The sound of silence, 

                     In my mind, 

                     Scares me, 

                     Makes me think, 

                     What is amiss,

                     O serenity, 

                     Why you elude me, 

                     Come to me, 

                     Let me calm down. 

Thus spoke serenity :

Walk alone on the path of life, 

Stroll on green grass, 

Listen to the music full of life, 

Do not dwell over darkness, 

Search for the light. 

One thin ray of light, 

Will enlighten your path, 

Follow the ray, 

It'll lead you to me. 

                    Oh it is easy I thought, 

                     To walk on grass, 

                     And listen to music, 

                     But how do I search, 

                     For that elusive, 

                     Ray of light. 

I had nothing to lose, 

So followed her advise, 

And it made me realise, 

The grass is so soft and nice, 

People tread on it yet it smiles, 

The creators of music, 

So soulful and soothing, 

Was their life always contended, 

Joyous and blissful? 

                        Serendipity stuck, 

                        Realization came, 

                        The ray of light, 

                        Brilliant effulgence, 

                        Illuminated my path, 

                        Serenity engulfed me, 

                        Oh now I know, 

                        It was always with me, 

                        Only I myself, 

                       Had darkened the path. 

Sunday, 20 March 2022

पतझड़ और बसंत


पतझड़ के मौसम में,
नग्न वृक्षों की डालियाँ,
हवा के इधर उधर जाती,
एक दूजे से टकराती,
लगता था मानो गले मिल कर, 
अपने दुःख हैं बांटती । 

कहाँ गई वह छांव,
कहाँ गई वह हरियाली, 
जिस पर हम नाज़ करते थे, 
इठलाते थे अपनी सुंदरता पर, 
हाय आज एक पथिक भी ना आया, 
ईष तूने ये क्या दिन दिखलाया। 

छोड़ गए सब हमको, 
जब परिपक्व हो गए, 
देखो जरा, 
उड़ते इतराते पत्तों को, 
आज वह स्वतन्त्र हो गए। 
                 पत्ते सोचें, 
                 अहा कितना सुखद आनंदमय, 
                 जीवन यह इस स्वतन्त्रता का, 
                 उड़ते है हम र्निबाधित हो, 
                  मंद मंद हंसते नग्न वृक्ष पर, 
                  थे शोभा जिसकी अब तक। 
तभी भड़ भड़  करती, 
तीव्र गति से हवा आयी, 
कुछ पत्ते गिरे धरती पर, 
कुछ को उड़ा ले दूर ले गई, 
कुछ कुचल गए क़दमों तले, 
कुछ अग्नि में भस्म हो गए।
                      और फिर 
                      आयी बसंत ऋतु,
                      कोमल कपोलें, 
                      नीद से जगी, 
                      अंगड़ाई ले, 
                      हरित मुख ले मुस्काई, 
                      बोलीं 
                      तू उदास क्यूँ रे वृक्ष, 
                      यह तो जग की रीत,
                      कोई जाए कोई आए, 
                      तेरा सौंदर्य सदा रहेगा अडिग। 
हरित वृक्ष की शाखाएँ, 
हवा के झोंके से छम छम नाची, 
वह दृश्य मनोहर देख, 
धरती भी मुस्काई, 
भाग्य पर इठलाई। 
 
   
ज्योत्सना पंत          


Sunday, 30 January 2022

सखियाँ


आज जो देखा वह मुझे झिंझोड गया। भावों की लहरों में गोते खाते कुछ पंक्तियां स्वतः ही लेखनी से छलक गयीं, मन की पीड़ा को अपने तक सीमित न रख सकी। 
सखियाँ

मृत देह पडी थी आँगन में, 

पत्नी भी उसके निकट खड़ी, 

पर कोई नहीं था कहने को, 

रो मत हम हैं ना, 

हम सब सखियाँ तेरे साथ खड़ी। 

      नम आखों से बार बार निहारती, 

      सोचती थी सब आएँगी, 

      इस असह्य दुःख के पल में, 

      गले लगा कुछ तो ढाढस बधाएंगी। 

अश्रु बह गए,

नयन सूख गए, 

पर एक ना आयी कहने को, 

रो मत हम हैं ना,

हम सखियाँ तेरे साथ खड़ी।

         सुख में तो सब अपने हैं, 

         दुःख में भी कोई याद करे, 

         पर वाह रे आदम तेरी रीत, 

         सुख में ईश्वर को भी  भूला, 

         दुःख में निरंतर ध्यान करे। 

क्षण भर को विचलित था मन, 

पर अब क्लेश नहीं कोई, 

तुम्हें देख मुस्काउंगी अब भी, 

निर्मल मन और निष्कपट रहूँगी, 

क्यों कि यही प्रकृति है मेरी।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

रहीम जी का दोहा याद आ गया विचलित मन को शांत करने। 


क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात। 

कह रहीम हरि का घट्यो, जो भृगु मारी लात।।

Thursday, 13 January 2022

Key To Happiness

Inspired by dialogue between two friends who felt sad by the way their life was going. I think "No one else but we can decide whether to feel dejected or exulted."

Key To Happiness

Why does my heart ache,

Why my brain goes numb,

Life seems like an empty vas,

Of flowers gone wilted and dry.


                 The world is so noisy,

                 I long for eternal calm,

                 Life has gone by,

                 Listening to what others say,

                 And to what will others say,

                 I forgot how to listen,

                 What my innerself spoke,

                 Forgot what I want.

                        

I can listen to them,

Even when they are quite,

Their unspoken words,

Have greater might,

My life spiraled,

Gone out of shape.


           In my dreams and in my sight,

           Always thinking they are right,

           Pleasing them is my destiny,

           And that'll make future bright.


   How wrong was I,

   But no one to blame,

   It is futile to ponder in past,

   Feeling dejected all in vain.

                

             How to shut myself to noise,

             To silent words and glaring sight,

             To the side ways glances,

              And remarks snide,

              I have yet to learn,

              To live my life,

              The way I yearn.


   Life is beautiful,

   With people who care,

   Why bother for those,

   Snide remarks and stare.

  

               Life is beautiful vase,

               Put the colourful blooms,

               Make it fragrant and bright.

              

   Key to happiness,

   Is in our care,

   Listen to your inner voice,

   You will feel joyful and sublime.               


               🌻 🌹🌺🌷🌿🌾🍁🍀