।ओ मंद मंद बहती पवन।
ऊंचे ऊंचे पर्वतों के ,
लहलहाते खेतों को ,
स्पर्श करके आती,
जन्म भूमि की गंध युक्त,
ओ मंद मंद बहती पवन,
बचपन का स्मरण कराती,
आज मुझको इतना बता दे,
जीवन स्वप्न है या तथ्य?
खुले नयनों से मधुर स्वप्न देखूँ,
स्वप्न की दुनिया में डूबी,
अतीत की यादों में खोयी,
मन ही मन मुस्काऊं,
ओ सुगन्धित पवन,
तू मंद मंद बहती रह,
मुझे स्वप्न नगरी में रहने दे,
बहुत मधुर है तेरा स्पर्श
इस मधुर मधु को पीने दे।
रहने दे! आज सत्य ना बता,
स्वप्न लोक में ही रहने दे,
स्वप्न में ही सही,
मुझे रोमांचित होने दे,
अपने मधुर स्पर्श से देवभूमि की,
उन ऊँचीं श्रृंखलाओं का भ्रमण करने दे।
ओ मंद मंद बहती पवन,
स्वर्ग सी अनुभूति होती,
तेरे चंचल आलिंगन से,
विनती तुमसे करती हूँ,
विदा ले के जाती हो तो जाओ,
इतना तुम बस कर देना,
आद्रित नेत्र,
औ' कम्पित होठों से,
याद करती हूँ तुम्हें मैं,
यह
जन्म भूमि से कह देना,
तुम देव भूमि से कह देना।
No comments:
Post a Comment