Sunday, 30 January 2022

सखियाँ


आज जो देखा वह मुझे झिंझोड गया। भावों की लहरों में गोते खाते कुछ पंक्तियां स्वतः ही लेखनी से छलक गयीं, मन की पीड़ा को अपने तक सीमित न रख सकी। 
सखियाँ

मृत देह पडी थी आँगन में, 

पत्नी भी उसके निकट खड़ी, 

पर कोई नहीं था कहने को, 

रो मत हम हैं ना, 

हम सब सखियाँ तेरे साथ खड़ी। 

      नम आखों से बार बार निहारती, 

      सोचती थी सब आएँगी, 

      इस असह्य दुःख के पल में, 

      गले लगा कुछ तो ढाढस बधाएंगी। 

अश्रु बह गए,

नयन सूख गए, 

पर एक ना आयी कहने को, 

रो मत हम हैं ना,

हम सखियाँ तेरे साथ खड़ी।

         सुख में तो सब अपने हैं, 

         दुःख में भी कोई याद करे, 

         पर वाह रे आदम तेरी रीत, 

         सुख में ईश्वर को भी  भूला, 

         दुःख में निरंतर ध्यान करे। 

क्षण भर को विचलित था मन, 

पर अब क्लेश नहीं कोई, 

तुम्हें देख मुस्काउंगी अब भी, 

निर्मल मन और निष्कपट रहूँगी, 

क्यों कि यही प्रकृति है मेरी।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

रहीम जी का दोहा याद आ गया विचलित मन को शांत करने। 


क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात। 

कह रहीम हरि का घट्यो, जो भृगु मारी लात।।

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