डाल बीज़ माटी में चला गया,
बांस के बीच उगा देख,
उसे गमले में मैंने लगा लिया।
कोई बोला पीपल ना लगाओ घर पर,
अशुभ होगा मानो मेरा कहना,
पर एक ना मैंने मानी,
उस पीपल के पौधे को,
बोनसाई बनाने की ठानी।
सोचा नारायण जिस वृक्ष में रहते,
वो क्या अशुभ फल देगा,
चलो इसी बहाने नारायण का,
मेरे घर में वास होगा।
जल अर्पण कर,
नमन अर्पण कर,
नित्य उनसे कहती,
वृक्ष महोदय सूख ना जाना,
विनती तुमसे करती।
नित्य एक पीपल पत्ता,
मेरे कोमल मन को,
आघात दे त्रस्त कर,
पृथ्वी पर गिर जाता।
अब देखो मेरा कहा ना माना,
पीपल तुमने सूखा दिया,
अनहोनी ना हो कोई,
यह कह कर उसने मुँह फिरा लिया।
शंकित मन था,
कुछ भय भी था,
पर जल चढ़ा,
नमन कर विनती करना ना छोड़ा।
फिर नव वर्ष के द्वार,
चैत्र मास ने खोले,
तो पीपल मेरा बोला,
अरे पगली सूखा ना था,
नयन मूंद अपने अंतर्मन में,
तुझे धन्यवाद् देता था,
आज चैत्र मास आया,
इन नन्हें कोमल,
हरे गुलाबी पत्ते ले,
नव वर्ष की शुभकामनाएं,
ब्रह्म मुहुर्त में मैं तुझे देने आया।
मेरा पीपल पुनः हरा हुआ,
पत्तों से सुसज्जित उसको,
मैंने पाया,
गद गद हो हाथ जोड़,
इतने अद्भुत सुन्दर,
नव वर्ष के उपहार का,
आभार मैंने जताया।
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