चिर निद्रा में नहीं सुलाता,
मुझको तू क्यों नहिं बुलाता,
बालक हूँ मैं भी तो तेरी,
मुझे पर दया क्यूं नहिं दिखाता।
क्यों हृदय इतना कठोर तेरा,
तू तो कमल सा कोमल है रे,
मुझमें ही कुछ कमी होगी,
किये होंगे कुछ पाप मैंने।
चेतना में तो बहुत खोजा,
अवचेतन में भी बहुत खंगाला,
पर एक नहीं कारण मिल पाया,
देखा नन्हें बालक को,
दर्द से तड़पते अश्रु बहाते।
तब सोचा,
नन्हा बालक क्या जानें,
चेतन अवचेतन,
फिर वो क्यूँ,
भुगत रहा इतना त्रास,
उनके कोमल चित्त ने ना जाना,
किस कारण मिला दंड उन्हें।
हे मालिक तू ही बता,
अब किससे करें आस।
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