Tuesday, 11 May 2021

मधुर स्वप्न आशा की किरण

यह स्वरचित कविता मेरी मित्र दीपा पांडे ने मुझे whatsapp से भेजी थी।  इतनी सुन्दर आशा पूर्ण कविता सब के साथ साझा हो इसलिए मैने उनसे अनुमति मांगी कि अपने ब्लॉग में इसे ब्लॉग कर दूँ। दीपा जी ने अनुमति दी इसलिए उनकी आभारी हूं। 

आनंद लीजिए और आशा की किरण  से अपने जीवन को प्रकाश पूर्ण रखिए। 

मधुर स्वप्न आशा की किरण 

निद्रा से मत जगाना,

मैं स्वप्न में हूँ।

कोई मत जगाना मैं स्वप्न में हूँ,

ये संसार कितना सुंदर हो गया है,

इंद्रधनुषि छटा बिखर रही चहुँ ओर,

ये कलरव मधुर इन पंछियों का,

रंग बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही पुष्पों में,

ये बाग़ बग़ीचे और कितनी मनमोहक हरियाली,

भँवरे गुन गुन गुंजा रहे हैं,

हर सूरत कितनी प्रसन्न है धरा में,

हर दुःख अब विदा हो गया है,

गाते बजाते मंजर है ऐसे,

जैसे त्योहार मना रहे हैं,

घर घर तोरण सजने लगे हैं,

पुष्प कलीं बिखरने लगी है,

बाज़ारों की रौनक़ अति सुहानी,

मालाएँ लड़ियाँ सजने लगी है,

अंत हो गया महामारी का,

सुख सर्वव्यापी हो गया है,

बच्चों की किलकारियों से जग झूम रहा है,

सूने झूलों में आ गयी बहारें,

फिर से स्कूल खुलने लगे हैं,

बच्चे इम्तिहान देने लगे हैं,

आहा!

ये दुनिया चलने लगी है।

फिर से ख़ुशियाँ बरसने लगी है,

ये नदियों की कल कल कितनी मधुर है,

ये तोतों के स्वर कितने सुहाने,

मानो प्रकृति सज के संवर के,

अनुपम छटा बिखेर रही है,

ये ही मेरा आने वाला पल,

ये ही होगा,

सबका आने वाला पल,

कोई भी ना हो क्षण भर उदास,

अब मेरी निद्रा ,तंद्रा होने वाली है,

स्वप्न भी सारे साकार होने वाले,

अब स्वप्न भी सारे साकार होने वाले हैं।

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दीपा पांडे 

कवियत्री दीपा पांडे 


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