Monday, 6 September 2021

डेढ़ टांग का पक्षी



डेढ़ टांग का पक्षी 

एक पैर पर,

फुदकते देखा उसको,

सोचने लगी मैं,🤔

कितनी अद्भुत है यह पक्षी,

हताश नहीं विकलांगता से,

उन्मुक्त पंछी बन उड़ जाती,

इधर फुदकती, उधर फुदकती,

दाना चुग बच्चों को देती,

जीवन रस का आनंद लेती,

अद्भुत पक्षी है यह।

मैंने सोचा पूछूं उससे,

किसने की यह दशा तुम्हारी? 

मेरा प्रश्नचिन्ह भाव देख कर,

हंसते हंसते वह बोली,

छोटी थी जब,

उत्सुकता की मूरत थी मैं। 

एक दिन 

माँ बोली तू बैठ किनारे,

मैं लाती दाना चुग कर।

धूप तेज़ थी,

आसमा में उड़ते थे पंछी,

कुछ आ जाते सागर में,

शायद अपनी तपन बुझाने।

               मैंने सोचा झट पट डुबकी लगा के आऊं,

               तपते पैरों को धो कर आऊं,

               माँ जब आए दाना लाए,

              खा कर निद्रा मग्न हो जाऊं,

              और मैं सागर लहरों में चली गई। 

   चमकती एक चीज़ देखी, 

   उसपर फुदक गई,

   पीड़ा से फिर कराह उठी मैं, 

   देखा लहरें आधा पांव ले गईं, 

   मैं डेढ़ टांग की चिड़िया बन गई। 

                      कारण तो इसका तुम हो मानव, 

                             पर लो क्षमा किया मैंने तुमको, 

                             प्रकृति से तुम खेलना छोड़ो, 

                             यह सबकी धरोहर है, 

                             हे मानव ये तुम कब समझोगे। 

इतना कह कर फुर्र हो गई, 

मुझको अनमोल सीख दे गयी, 

क्षमा दान से दान बड़ा ना कोई, 

दुःख कष्ट सबके जीवन में,

जीवन में हार ना मानो, 

हंस कर जीना सीखो। 

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