Sunday 12 September 2021

तुम क्यूँ आए मेरे जीवन में


य़ह कविता उस बच्चे के लिए है जिसे बचपन से जानती थी और जीवन के अंतिम दो वर्ष वह मेरे इतने समीप आ गया था कि मेरे जीवन का अवियोज्य अंग बन गया। उसका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि सबका मन मोह लेता था।
बीस वर्ष हो गए परंतु आज भी नेत्र बंद करती हूँ तो उसका मुस्कराता चेहरा सामने आ जाता है मानो कह रहा हो मैं तो तेरे साथ हूँ।
सिद्धार्थ (हमारे लिए वह Bunny था) की बीसवीं पुण्यतिथि पर उसे यह कविता समर्पित करती हूँ।

तुम क्यूँ आए मेरे जीवन में 

क्यूँ आए तुम मेरे जीवन में,
ये सोचती हूं तो विस्मय होता है,
इतना कोलाहल बच्चों का था, 
पर तुम ही ऐसे मुस्काते थे, 
जैसे झिलमिल बारिश की बूँदें,
जैसे फूल की पंखुड़ियां,
नटखट सी वो मुस्कान दे कर, 
सदा के लिए ऋणी कर जाते थे। 

खुशबू फैलाती थीं सांसें,
साहस के तुम मूरत थे, 
नयन मूंदती हूं तो सन्मुख, 
हंस कर फिर तुम आ जाते हो, 
जैसे कहते पकड़ सको तो पकड़ो, 
नयन खोल कर देखूँ तब तक, 
फूर्र से गायब हो जाते हो। 

सीखा तुम से हंस कर जीवन में, 
दुःख दर्द कष्टों को सहना, 
यह जीवन क्षण भंगुर है, 
हर पल का इसका आनंद लेना, 
छोटी छोटी बातों में, 
नटखट सी मुस्कान में, 
बिना कहे भी कितना कह गए, 
सोच सोच कर विस्मित होती हूं। 

क्यूँ आए मेरे जीवन में, 
चाहे ये कभी ना समझूँ, 
पर नयन मूंद मुस्काते चेहरे संग, 
मैं भी हरदम मुस्काती हूं, 
तुम आए मेरे जीवन में, 
यह सोच सोच सुख पाती हूँ। 

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