Tuesday, 28 September 2021

हमरा बेचारा बप्पू

हमरा बेचारा बप्पू 

शेर की दहाड़ हो,

या बिल्ली की म्याऊँ,

हम तो दोनों से ही डरते,

ओ मेरे भाऊ।


बप्पू बना शेर तो,

माँ भीगी बिल्ली,

शेर तो एक बार दहाड़ बैठ गया,

बिल्ली करती दिनभर म्याऊँ म्याऊँ।


शेर बैठा है आसन में,

हम बैठे कोने में,

गला खखारा बोलने को, 

तो भीगी बिल्ली ऐसे गुर्राई, 

हिम्मत ना कर सके कोई, 

पूछने की कि क्या है खाने में? 


शायद बप्पू हमरे भूल गए, 

बिल्ली शेर की मौसी है, 

पर हम बेचारे चूहे बन गए, 

इन दोनों की चिक चिक में। 


माता रानी चढ़ी पलंग पर, 

जैसे कोई हो कोई पेड़, 

गुलूकोज के बिस्कुट खा गयी, 

भर लिया अपना पेट। 


कुछ हमरे भी हाथ लगे, 

हो गये हम धन्य, 

बप्पू जी तो सहलाते पेट, 

उनसे भूक सही ना जाए, 

"I am sorry" कैसे बोलूँ, 

अब यह समझ ना आए। 


भौंहैं ऊंची मुंह टेढ़ा कर, 

बोली हमरी माता रानी, 

अबला निर्बल दुर्बल भूल जाओ, 

मैं इक्कीसवी सदी की नारी, 

भूक लगी है तो खालो, 

डबल रोटी और अचारी। 


और बप्पू डबलरोटी ओर अचार खा, 

मुंह ढ़क कर लेट गए, 

किस मनहूस का उठते ही मुंह देखा, 

सोचते सोचते सो गए। 


उठे तो याद आया, 

खुद को ही शीशे में निहारा था, 

हिम्मत करके माफी मांगी, 

फिर पेट भर खाना पाया था। 

बेचारा बप्पू सबक सीख गया, 

फिर ना कभी गुर्राया था। 

🐈🐶🐈🐶🐈🐶🐈🐶🐈🐶🐈🐈🐶🐈🐶

Sunday, 19 September 2021

Cold Ashes Hot Ambers

Cold Ashes Hot Ambers 

The wound had healed,

The ashes had cooled, 

Thought I've forgotten the past,

Though time seemed to whiz by,

Life was stuck in pattern, 

In drudgery of daily routine,

And I was happy

So I thought. 


Your utterance jolted me, 

The words like needle, 

Pricked the scab, 

Made the wound bleed, 

Making me understand, 

The meaning of vulnerability, 

Yes I am vulnerable. 


The ashes blew off, 

With  each sigh of your's, 

The ambers of past, 

Became fire again, 

Making me understand , 

Meaning of  being aflame, 

Yes I am aflamed, 

I am aglow with raging fire. 


And it said, 

Are you scared of your past, 

Or scared of pain it caused, 

You think of wound and ash, 

What about time you laughed, 

You danced with happiness, 

You kissed tiny pink feet, 

That your babies showed, 

Lay onthe dark Beach, 

Counting stars and waves,  

So much happiness why be sad,

To you my dear I will say, 

Go and find happiness 

From the past. 


Love yourself for who you are, 

Love yourself for what you are, 

Love yourself for what you were, 

For this will make what you will be. 


No needle can prick your wound, 

No sigh can cause ashes to blow, 

Upto you to, 

Decide!! 

You want to glow like sun, 

Be cool like moon, 

Fragrant like flower, 

Or burn like ambers,

Hidden under the ashes

With sadness and gloom. 


I opened my eyes, 

Woke up from my reverie, 

I found myself alone. 

Who was speaking to me? 

Was it a dream, 

Or just my imagination. 


Then came the soothing voice

I am your alter ego your other half , 

Hungry for your laughter and smile,

Get out of dreamland open your eyes, 

I laughed out aloud my carefree laugh, 

Understood what is happiness, 

Yes I am happy. 


I became busy in routine, 

In daily drudgery, 

Smiling away laughing loud, 

With memories of past 

And time kept flitting away,

With memory of past, 



Sunday, 12 September 2021

तुम क्यूँ आए मेरे जीवन में


य़ह कविता उस बच्चे के लिए है जिसे बचपन से जानती थी और जीवन के अंतिम दो वर्ष वह मेरे इतने समीप आ गया था कि मेरे जीवन का अवियोज्य अंग बन गया। उसका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि सबका मन मोह लेता था।
बीस वर्ष हो गए परंतु आज भी नेत्र बंद करती हूँ तो उसका मुस्कराता चेहरा सामने आ जाता है मानो कह रहा हो मैं तो तेरे साथ हूँ।
सिद्धार्थ (हमारे लिए वह Bunny था) की बीसवीं पुण्यतिथि पर उसे यह कविता समर्पित करती हूँ।

तुम क्यूँ आए मेरे जीवन में 

क्यूँ आए तुम मेरे जीवन में,
ये सोचती हूं तो विस्मय होता है,
इतना कोलाहल बच्चों का था, 
पर तुम ही ऐसे मुस्काते थे, 
जैसे झिलमिल बारिश की बूँदें,
जैसे फूल की पंखुड़ियां,
नटखट सी वो मुस्कान दे कर, 
सदा के लिए ऋणी कर जाते थे। 

खुशबू फैलाती थीं सांसें,
साहस के तुम मूरत थे, 
नयन मूंदती हूं तो सन्मुख, 
हंस कर फिर तुम आ जाते हो, 
जैसे कहते पकड़ सको तो पकड़ो, 
नयन खोल कर देखूँ तब तक, 
फूर्र से गायब हो जाते हो। 

सीखा तुम से हंस कर जीवन में, 
दुःख दर्द कष्टों को सहना, 
यह जीवन क्षण भंगुर है, 
हर पल का इसका आनंद लेना, 
छोटी छोटी बातों में, 
नटखट सी मुस्कान में, 
बिना कहे भी कितना कह गए, 
सोच सोच कर विस्मित होती हूं। 

क्यूँ आए मेरे जीवन में, 
चाहे ये कभी ना समझूँ, 
पर नयन मूंद मुस्काते चेहरे संग, 
मैं भी हरदम मुस्काती हूं, 
तुम आए मेरे जीवन में, 
यह सोच सोच सुख पाती हूँ। 

 🌻🌻🌻🌻🌻




Monday, 6 September 2021

डेढ़ टांग का पक्षी



डेढ़ टांग का पक्षी 

एक पैर पर,

फुदकते देखा उसको,

सोचने लगी मैं,🤔

कितनी अद्भुत है यह पक्षी,

हताश नहीं विकलांगता से,

उन्मुक्त पंछी बन उड़ जाती,

इधर फुदकती, उधर फुदकती,

दाना चुग बच्चों को देती,

जीवन रस का आनंद लेती,

अद्भुत पक्षी है यह।

मैंने सोचा पूछूं उससे,

किसने की यह दशा तुम्हारी? 

मेरा प्रश्नचिन्ह भाव देख कर,

हंसते हंसते वह बोली,

छोटी थी जब,

उत्सुकता की मूरत थी मैं। 

एक दिन 

माँ बोली तू बैठ किनारे,

मैं लाती दाना चुग कर।

धूप तेज़ थी,

आसमा में उड़ते थे पंछी,

कुछ आ जाते सागर में,

शायद अपनी तपन बुझाने।

               मैंने सोचा झट पट डुबकी लगा के आऊं,

               तपते पैरों को धो कर आऊं,

               माँ जब आए दाना लाए,

              खा कर निद्रा मग्न हो जाऊं,

              और मैं सागर लहरों में चली गई। 

   चमकती एक चीज़ देखी, 

   उसपर फुदक गई,

   पीड़ा से फिर कराह उठी मैं, 

   देखा लहरें आधा पांव ले गईं, 

   मैं डेढ़ टांग की चिड़िया बन गई। 

                      कारण तो इसका तुम हो मानव, 

                             पर लो क्षमा किया मैंने तुमको, 

                             प्रकृति से तुम खेलना छोड़ो, 

                             यह सबकी धरोहर है, 

                             हे मानव ये तुम कब समझोगे। 

इतना कह कर फुर्र हो गई, 

मुझको अनमोल सीख दे गयी, 

क्षमा दान से दान बड़ा ना कोई, 

दुःख कष्ट सबके जीवन में,

जीवन में हार ना मानो, 

हंस कर जीना सीखो। 

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Friday, 3 September 2021

कहानी

 कहानी


कहानी कहें या अपनी आप बीती, जब हमने बतानी शुरू की तो सब उत्साहित हो कर ऐसे बैठ गए मानो हम रानी लक्ष्मी बाई, या देवी अहिल्या बाई की कथा सुनाने जा रही थीं (लखनवी हैं हम, मैं नहीं हम कहते हैं)। हमने भी कुछ रहस्मय विराम देते हुए शुरू किया ही था कि "जब हम जवां थे" और सबकी भौहैं वक्राकार हो गई,

सब हमको ऐसे देखने लगे मानो हमने कुछ अवांछित शब्द कह दिए हों। सब हत्स्बद्ध थे, हम अचंभित थे।

हमने माना कि हम ७० के मुहाने में खड़े हैं, पर गोया हम भी कभी बच्चे थे, जवान थे और अल्हड़पन के लिए मशहूर थे, गली मोहल्ले से गुजरते तो दस पांच पीछे हो लेते थे।


अब कमर धनुष हो गई,

हाथ बाण बन सहारा देते,

केश जो सीसे के थे,

सो अब और सुंदर हो गए,

चांदी की पर्त चढ़ा,

और सुसज्जित हो गए,

तो क्या?


मुहँ ने सोचा ये दांत किस काम के,

कभी थोड़ा मुस्करा कर,

सफेद मोती दिखलाते,

तो कभी खीसें निपोरते थे,

अब तो लोगों को कमर या,

केशों की चाँदनी दिखती है,

मुस्कुराये या खीसें निपोरें,

किसीको क्या पड़ी? 

फिर निकाल फेंके दांत,

मुहँ पोपला हो गया,

तो क्या?


मुहँ पोपला हो गया,

कमर धनुष हो गई,

काली रात सिर पर,

अब सुनहरी हो गई, 

तो क्या? तो क्या हुआ?

हम भी कभी बच्चे थे,

जवान थे,

अल्हड़ थे,

गली चौराहे से गुजरते, 

तो दस पांच आगे पीछे हो लेते।

समझे? 

कहानी या यूं कहिये,

आप बीती तो रह गई,

सब की निगाहों ने,

कमान रूपी भौंहौं ने,

कमसिन जवानी की,

भूली यादें ताज़ा कर दी, 

और फिर,

इस पोपले मुहँ से,

बचपन से पचपन, 

तक की बातें, 

ऐसे गिरीं, 

मानो नकली बत्तीसी।


अरे अब तो समझो, 

हम भी कभी जवां थे। 


चुप चाप अपने दंत हीन मुहँ को,

रुमाल से पोछते हुए,

रेशमी केशों पर हाथ फेरते,

धनुष रूपी कमर को,

बाण सा सीधा करने का,

असफल प्रयास करते,

खिसके चश्मे को नाक पर चढ़ाते,

थोड़ी तिरछी नज़र करते,

शर्माते हुए बस इतना ही बोल पाए,

गोया हंसो नहीं,

भौंहैं टेढ़ी करो नहीं,

क्यूँ कि हम भी कभी,

बच्चे थे,

कमसिन जवानी के,

गर्वान्वित स्वामी थे,

हम भी कभी बच्चे थे,

कमसिन जवानी के धारक थे।


और हमारी कहानी शुरु होने से पहले ही खत्म हो गई, क्यूँ कि सुनने वाले अभी भी विस्मित बैठे थे कि ये क्या वाकई में कभी जवां थे 😂😂😂.