Friday, 9 April 2021

सन्नाटा और शांति


सन्नाटा और शांति 

थक गई हूं, 
जीवन के इस कोलाहल से सिक्त सन्नाटे से। 

कोई होता ऐसा अपना, 

आलिंगन कर हाथ थामे, 

निःशब्द बैठे होते, 

आंखों आँखों हँसते, 

फिर भी, 

सब कुछ कह जाते। 

वहाँ सन्नाटा नहीं शांति होती, 

कितनी शांति होती उस अपनेपन में।


आज सब हैं, साथ है, 

फिर भी है सन्नाटा। 

कोई कहता "आह कितनी शांति है"। 

मैं चकित सी निहारूं उसे,

जिसको अर्थ औ' अन्तर ना समझा, 

शांति और सन्नाटे में । 


                 "साधन औ' सुविधाएं हैं" बोला वह, 

                 कितना सुख साधन औ' वैभव है, 

                 कितना खुश और सुखी है जीवन उसका। 

                 मैं चकित सी निहारूं उसे।

 

                 सोचूँ अरे वैभव सुख साधन में, 

                 और सुख खुशी में अन्तर है, 

                 इस अन्तर को अरे क्या कभी, 

                 तुमने जाना और पहचाना है ? 

                 

                 एक बोल प्यार का, 

                 एक बोल दुलार का, 

                 हंस कर अपने बोल दें, 

                 वही सुख है वही खुशी है, 

                 पर कोई समझे तब ना। 

                 

  थक गई हूं इस साथ के एकाकीपन से, 

  इस दिन के अंधियारे से। 

  

  ढूंढती हूं उजियारा, 

  रात्रि के कालेपन में, 

  लोग समझते पागल है। 

  मैं चकित सी निहारूं उन्हैं। 


  मन ही मन मुस्कुराऊं और सोचूँ, 

  वो क्या जानें मेरे अंतः में उफनता उद्वेग, 

  जो कोलाहल में शांति चाहे, 

  ना कि सन्नाटे का साथ। 

  थक गई हूं जीवन के इस सन्नाटे से। 

  जीवन के एकाकीपन से। 


4 comments:

  1. Bahut sundar. Dil ki awaaz koi toh hai jo janta hai... O Krishna 🙏

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    1. मन की भावनाओं को समझने के लिए अतिशय धन्यवाद। ओम श्री कृष्णा 🙏🙏

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    2. बहुत बहुत ख़ूबसूरती से सन्नाटा और शांति ,
      ऐसा लग रहा है हर किसी का हाले बयाँ कर दिया आपने
      सुंदर अभिव्यक्ति🙏🏻🙏🏻❤️

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    3. धन्यवाद दीपा 🙏🙏

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