आज श्री शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा लिखित उपन्यास "शेष परिचय" पढ़ रही थी कि पंद्रह उपकरण के अंत में लिखा था " इतना उपन्यास लिखने के बाद शरद बाबू काल का ग्रास बन गए और उपन्यास को आगे बढ़ाने ऐवं पूरा करने का श्रेय सुप्रसिद्ध बंगला कथाकार राधारानी देवी को है। शरद बाबू उनसे प्रायः विचार विमर्श करते थे सो पाठकों को दो लेखकों की रचना होने जैसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता"
मैं विस्मित सी सोचती रही कि इन्हीं के समान मेरे और पूनम के सोच और लेखनी में कितनी समानता है।
शरद बाबू और राधारानी देवी से मैं अपनी और पूनम की तुलना कदापि नहीं कर रही। ऐसा करने की उद्दंडता और पाप तो मैं स्वप्न में भी नहीं कर सकती, परंतु मुझे इस बात का उत्तर जरूर मिल गया कि दूरी कितनी भी हो विचारों का मिलन दूभर नहीं।
प्रेषित कविता की चार पंक्तियाँ मैंने पुष्प के चित्र के साथ पूनम उनियाल भेजी, उसने सिलसिला आगे बढ़ा दिया और कविता को अंतिम रूप देकर मुझे अद्भुत मिलन की अनुभूति हुई।
मैं विस्मित सी सोचती रही कि इन्हीं के समान मेरे और पूनम के सोच और लेखनी में कितनी समानता है।
शरद बाबू और राधारानी देवी से मैं अपनी और पूनम की तुलना कदापि नहीं कर रही। ऐसा करने की उद्दंडता और पाप तो मैं स्वप्न में भी नहीं कर सकती, परंतु मुझे इस बात का उत्तर जरूर मिल गया कि दूरी कितनी भी हो विचारों का मिलन दूभर नहीं।
प्रेषित कविता की चार पंक्तियाँ मैंने पुष्प के चित्र के साथ पूनम उनियाल भेजी, उसने सिलसिला आगे बढ़ा दिया और कविता को अंतिम रूप देकर मुझे अद्भुत मिलन की अनुभूति हुई।
रात्री का यह रूप और यौवन
रात्रि का यह रूप और यह यौवन,
सुबह होते ढल जाएगा,
आओ अठखेलियाँ करें,
हर्ष मनाएं इस मधुर मिलन का।
चंचल, पुलकित, भाव विहगिमाओ से भरी,
अपने सौभाग्य पर हर्षित खिली खिली,
नाचती कूदती आनंदित सी,
पल पल अकुलाई संकुचाई सी।
अपने आवेग के वेग मैं बह निकली, अचानक ठिठकी, और अचंभित सी सिहरी!
मोर नृत्य की भांति जो पड़ी नजर अपने पद चापो मैं,
तो पता चला कहाँ से कहाँ बह चली इन राहों में!
तब कहती है कमलिनी अपनी अग्रज ज्योति पुंज से,
अन्तराल यूँही बह निकला अपनी अन्जुलि से!
पता ही नहीं चला कब भोर हुई,
पता नहीं चला कब भोर हुई,
देखा यौवन ढल चुका था,
जीवन इस अद्भुत नृत्य में,
अपने को ही भूल चला था,
पुष्प मतवाला अपनी मधुरिमा से,
सबको उन्मादित कर चला गया।
कब जिम्मेदारियों में जीवन की रात्रि हुई,
कब भोर हुई यह अनुभूति ही नहीं हुई,
हे पुष्प तुझसे जीना सीख लिया,
अठखेलियाँ करना सीख लिया।
ज्योत्स्ना और पूनम 🤼♀️👭🤼♀️
कब जिम्मेदारियों में जीवन की रात्रि हुई,
कब भोर हुई यह अनुभूति ही नहीं हुई,
हे पुष्प तुझसे जीना सीख लिया,
अठखेलियाँ करना सीख लिया।
ज्योत्स्ना और पूनम 🤼♀️👭🤼♀️
Beautiful rachna
ReplyDeleteThank you jaya.
Deleteबहुत सुंदर कविता
Deleteकुघ पंक्तियाँँ -
खिलना सीख लिया
मुरझाना सीख लिया
मुरझाकर खिलना सीख लिया
धन्यवाद
Deleteमुर्झा कर खिलना सीख लिया
दुःख में भी हंसना सीख लिया,
जीवन को जी भर कर जीना सीख लिया।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteकब भोर हुई यह अनुभूति ही नही हुई
क्या बात है
धन्यवाद पंकज।
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