घर की सफाई करते पुरानी फोटो और पुस्तकों को टटोला तो अचानक इस चित्र देख कर और कविता पढ़ कर ५२ वर्ष पुरानी बचपन की यादें मन मष्तिष्क के पटल पर चलचित्र की भाँति उभर आईं।
यह water color की painting उसके पीछे कविता लिख कर मेरे पूज्य पिताजी श्री प्रकाश चंद्र पंत जी को उनके मित्रों की ओर से श्री भोला नाथ जी ने १९६९ में भेंट की थी।
पिता जी की रामायण, यह चित्र और कविता मेरे लिए अमूल्य है, जिन्हें मैं संजो के रखती हूं।
कविता चित्र के कागज से पढ़ कर लिख रही हूँ ताकि सब कविता का आनंद ले सकें और कविता ब्लॉग के माध्यम से भविष्य में भी सुरक्षित रहे।
आज चंदा को चकोरी मुस्कराता देखलेगी
गुनगुनाता देख लेगी मुस्कराता देख लेगी
मानसर के जुगुल हंसो का मधुर अभिसार होगा,
आज से सिय की कमल पर राम का अधिकार होगा।
आज अंचल से मदन का डोलता मंगल पवन है,
आज दो अंजान ह्रदयों का मिलन है,
प्रिय मिलन है दिल मिलन है मधुर मिलन है।
सर्वथा सम्भव निकट है आ गया जीवन सहारा,
आज तरनी को मिला है आगम जल अनुकूल धारा,
स्वप्न की रंगीनकी पर सत्य बन विश्वास आया,
निर्झरों सा मधु बहता आज फिर मधुमास आया,
ह्रदय की कोमल काली को आज फिर खिलने की लगन है,
आज दो अंजान हृदयों का मिलन है,
प्रिय मिलन है दिल मिलन है मधुर मिलन है।
आज श्रीवर राम नाथ के पावन चरण मैं,
हो रही है समर्पित स्वतः कलम उनके शरण में,
सर्व गुण से युक्त श्री रंजीत नारायण आशीष देते,
और बुलवारी दास जा रहे परम आनंद लेते,
भाई श्री विश्वनाथ जी कितने मगन हैं,
यह महफिलें रहें और महफ़िले-शबाब रहे,
---- महफ़िल से महफ़िल में इंकलाब रहे।
कानपुर मित्रों की ओर से
२९.११.६९. भोला नाथ
इस चित्र को ५२ वषों के पश्चात देखने और कविता को पढ़ने के बाद मेरे भाव 👇
भूली बिसरी यादें,
बहुत कुछ बोल जाती हैं,
बीते काल के घड़े को,
हिला कर कुछ पल के लिए,
अतीत में ले जाती हैं,
ऐसे ही कुछ पल के लिए,
अतीत के उन पृष्ठों में,
वर्तमान की किरणों ने,
फिर आज किया उजियारा।
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