यादें
कुछ खट्टी,कुछ मीठी,कुछ कड़वी,
कुछ नीरस,कुछ नीरव, कुछ सरस,
बस यादें ही तो हैं जो जीवन के,
दुर्गम मंजिल पर पहुंचे कैसे,
उस राह को दिखलाती हैं।
सब कहते भूत को भूल जाओ,
अतीत में क्या रखा है,
उसे ना कुरेदो,
कल की सोचते सोचते,
जीवन व्यतीत कर दिया,
भूत भविष्य छोड़ो,
वर्तमान में रहना सीखो।
बीत गया है जीवन सारा कल कल करके जीने में,
अब जीवन की सन्ध्या में,
वर्तमान को स्वर्णिम कर दो,
सोचो तो उस भविष्य का सोचो,
जो जा उस पार मिलेगा,
जब तन मन इस धरती पर छोड़,
परमात्मा से मिलन होगा।
फिर भी ये यादें जो मन मष्तिष्क पर बसी हुई हैं,
यह भूत जो भूत बन समा गया है इन यादों में,
कैसे उसको निष्कासित कर दूँ,
अपने जीवन पट से,
कोई मुझको बतला दे।
इस अतीत के सफर में,
मेरी वृद्धा माँ की जवानी,
मेरे जवां बच्चों का बचपन है,
साथ बिताए दुःख सुख के पल हैं,
ना जाने कितने अनमोल क्षण हैं,
उनको कैसे झुठला दूँ।
कोई मुझको बतला दे।
वर्तमान का आनंद ले कर,
भूत को सम्भाल भविष्य को संजोउंगी,
कुछ खट्टी, कुछ मीठी, कुछ कड़वी,
कुछ नीरस नीरव कुछ सरस,
यादों को एकाकी का साथी बनाकर,
भूत का फल वर्तमान में खा,
भविष्य को सुखद बना दूँगी।
खट्टी मीठी कड़वी,
नीरस नीरव सरस,
पर ये यादें मेरी अपनी हैं,
जिंदगी की राह में मेरी साथी हैं।
ये मेरी अपनी यादें हैं।
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