Wednesday, 12 February 2025

मुक्ति

मुक्ति 


नारायण ने की भक्ति स्वीकार,

दिया आशिर्वाद सदा स्वस्थ रहो।

मैं भोली पूछ बैठी,

फिर क्यूँ मैं अस्वस्थ ? 


नारायण बोले, 

क्यूं है तू अनभिज्ञ इस सत्य से,

तेरा यह शरीर है, नहीं तू अस्वस्थ। 


इस आवरण को जान,

स्वयं को पहचान, 

कर आत्म समर्पण, 

होगा तेरा कल्याण। 


पीड़ा अब असह्य हो गई, 

हे नारायण कब होगा, 

इस देह से निदान,  

अपने चरणों की धूल दे, 

मुझे कृतार्थ कर दे, 

शरण में मुझे अब, 

हे नाथ ले ले। 


किए हैं पाप अनभिज्ञता में, 

अबोध जान क्षमा तू करदे, 

दो कर जोड़ स्तुति मैं करती, 

शरण में तू ले ले, 

शरण में तू ले ले।।


🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
ज्योत्स्ना पंत


No comments:

Post a Comment