Friday, 5 May 2023

चाहत

 

चाहत

ना जीने की चाह,

ना मरने की राह,

धुवां सा उठा दूर अंधेरे में,

कोई दिया बुझा,

या जला दिल कोई,

यह जानने की चाह।


हवा का वो झोंका,

था बोझिल फ़ूलों की महक से

मैं भ्रमित सी इधर उधर,

देखती रह गई।


ये फ़ूलों से सुसज्जित,

कोमलांगना है जाती,

या श्मशान यात्रा में है कोई,

यह जानने की चाह।


आत्मा से मृत,

देह से जीवित,

धरती के ऊपर जैसे बोझ हो कोई,

यह अहंकार, स्वार्थ लालच से,

अंधा नयन सुख कौन,

यह जानने की चाह।


ना जीने की चाहत,

ना मरने की राह,

ये रंगीन दुनिया,

बदरंग इंसा,

इस अनोखी दुनिया में,

क्यूं भटकती हूँ,

क्या ढूंढती हूं,

ये जानने की चाह।।


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