Wednesday, 27 October 2021

इस रात की सुबह कब होगी


थक गयी हूंँ बहुत, 
इस रात की सुबह कब होगी। 

चांँद ने भी करवट ले ली,
ब्रह्मांड के वक्षस्थल में,
मुँह छिपा काली चादर ओढ़, 
स्वप्नों की दुनिया में खो गया। 
और एक मैं हूँ जो खुले नेत्रों से,
स्वप्नों का स्वप्न देख रही हूँ,
इन बोझिल पलकों से,
सूर्य की पहली किरण का,
बस इंतजार कर रही हूँ,
सोच रही हूंँ सुबह कब होगी।। 

पशु पक्षी और वृक्ष सो गए,
लता  कलियांँ और पुष्प सो गए,
इस अमावस की काली रात में,
केवल तारे करते टिम टिम, 
मानो चंँदा को लोरी गा गा, 
मीठी निद्रा में सुला रहे। 
इस रात की कालिमां को, 
निहार निहार सोच रही हूंँ, 
सुबह कब होगी।। 

सन्नाटा है चारों ओर, 
दूर कहीं से आवाज आयी, 
जागते रहो जागते रहो, 
सहसा सोये कुत्ते जगे, 
भौंक कर सन्नाटे की छाती चीरी, 
चौकन्ने हो सब ओर निहार कर, 
गर्मी की उस तपती धरती पर, 
फिर निद्रा मग्न हो सो गए। 
एक मैं हूँ जो मखमली चादर पर, 
लेटे लेटे नींद से बोझिल आंँखों से, 
निद्रा का स्वप्न देख रही हूँ, 
सोच रहीं हूंँ, 
इस रात की सुबह कब होगी।। 

आसमांँ में लाली छायी, 
पक्षियों ने कलरव कर, 
आशा के मधुर गीत सुनाए। 
कलियों ने ली अंगड़ाई, 
फूलोँ ने तब बोला, 
लो हो गयी सुबह, 
उठो जिसका तुम्हें था इंतजार, 
अंततः वह घड़ी आ गयी।। 

और मैं 
बिस्तर पर लेटे लेटे सोचूँ, 
इन बोझिल आंँखों ने नींद ना पायी, 
काश सुबह कुछ देर से होती, 
मैं भी कुछ घड़ी सो लेती , 
बोझिल पालकों से आंँखें मूंँदे, 
अब मैं सोचूँ, 
थक गयी हूंँ बहुत, 
कुछ पल सो लेती, 
काश सुबह कुछ देर से होती।। 

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