वह रक्त धार,
वह असह्य पीड़ा से भरे नेत्र,
भूल नहीं पाऊँगी कभी।
वह गगन भेदी चीख तुम्हारी,
फिर शून्य का जैसा सन्नाटा,
वह सिसकी से भरी श्वास तुम्हारी,
वह मासूम,
प्रश्न चिन्ह से अंकित चेहरा,
प्रश्न चिन्ह से अंकित चेहरा,
भूल नहीं पाऊँगी कभी।
भयभीत सी रहती थी सदा,
कहीं चूक ना फिर से हो जाये,
इस पूर्णिमा के चांँद से मुख पर,
राहू ना कोई नजर डाले,
केतु ना कोई छाया डाले,
उस ग्रहण समय को,
जब चाँद सा मुखड़ा,
अश्रु सिंचित था,
भूल नहीं पाऊँगी कभी।
क्षमा याचना करती हूँ,
ईश्वर से,
जो तुम्हारे,
अन्तः करण में बसता है।
हाथ जोड़ माँगू ईश्वर से
तुम
अपनी किलकारी से,
उनमुक्त खिलखिलाहट से,
उन्मादित करदो मेरा अन्तर मन।
उन्मादित करदो मेरा अन्तर मन ।
तुम्हारी दादी।
भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteThank you S Jyotsna Pant.
Deleteबहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
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