Thursday 7 April 2022

मैं और मेरा साया



 
मैं और मेरा साया

है ये साया इतना लंबा,

रहता मेरे साथ सदा,

अरे अपने तो कबके छोड़ गए,

इसने अब तक क्यूँ है,

इसने दामन थमा।


सूरज ढलता देख,

उसे भी शायद विचार आया,

क्यूँ कर इसका साथ दूँ अब,

और उसका स्वरूप बदला,

बदली उसकी माया।


कहाँ लुप्त हुआ वह,

ढूँढती हूं रात्री के अंधकार में,

पूर्णिमा की रात्रि में जब मिलता,

प्रसन्नता से निर्लिप्त हो,

प्रफुल्लित हो जाती मैं।


पूर्णिमा थी एक रात की,

सूरज आता केवल दिन में,

साये का क्या आए जाए,

रूप बदल कर,

फिर अन्धकार में,

छोड़ मुझे चला जाए।


माया मोह भी एक साया है,

इसने किसको सुख दिया,

करो जीवन को कमल पत्र सा,

जो नदी में रह कर भी ना डूबा,

सदा अडिग रह नीर की हर बूंद को,

अपने वक्षस्थल में ले मणींद्र बना,

स्वयं का सौंदर्य भी बढ़ा लिया।

ज्योत्सना पंत। 


Saturday 2 April 2022

नव संवत्सर का उपहार


             किस पक्षी ने खाया फल,

             डाल बीज़ माटी में चला गया,

             बांस के बीच उगा देख,

             उसे गमले में मैंने लगा लिया।

कोई बोला पीपल ना लगाओ घर पर,

अशुभ होगा मानो मेरा कहना,

पर एक ना मैंने मानी,

उस पीपल के पौधे को, 

बोनसाई बनाने की ठानी।

                  सोचा नारायण जिस वृक्ष में रहते,

                  वो क्या अशुभ फल देगा, 

                  चलो इसी बहाने नारायण का, 

                  मेरे घर में वास होगा। 

जल अर्पण कर,

नमन अर्पण कर, 

नित्य उनसे कहती,

वृक्ष महोदय सूख ना जाना, 

विनती तुमसे करती।

                 नित्य एक पीपल पत्ता,

                 मेरे कोमल मन को,

                आघात दे त्रस्त कर, 

                पृथ्वी पर गिर जाता। 

अब देखो मेरा कहा ना माना, 

पीपल तुमने सूखा दिया, 

अनहोनी ना हो कोई, 

यह कह कर उसने मुँह फिरा लिया। 

                        शंकित मन था, 

                        कुछ भय भी था, 

                        पर जल चढ़ा, 

                        नमन कर विनती करना ना छोड़ा। 

फिर नव वर्ष के द्वार, 

चैत्र मास ने  खोले,  

तो पीपल मेरा बोला, 

अरे पगली सूखा ना था, 

नयन मूंद अपने अंतर्मन में, 

तुझे धन्यवाद् देता था, 

आज चैत्र मास आया, 

इन नन्हें कोमल, 

हरे गुलाबी पत्ते ले, 

नव वर्ष की शुभकामनाएं, 

ब्रह्म मुहुर्त में मैं तुझे देने आया। 

               मेरा पीपल पुनः हरा हुआ, 

               पत्तों से सुसज्जित उसको, 

                मैंने पाया, 

                गद गद हो हाथ जोड़, 

                इतने अद्भुत सुन्दर, 

                नव वर्ष के उपहार का, 

                आभार मैंने जताया। 

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