सोचा था मिल बैठेंगे
कुछ कहेंगे,
कुछ सुनेंगे,
कभी अपने आंचल से,
दुनिया की जिस तपती धूप से,
ठंडी छाँव में रखा था कभी,
आज उस धूप और छांव की,
कुछ खट्टी, कुछ मीठी,
रसीले किस्से कहानी सुनेंगे सुनाएंगे ।
उत्साह और उन्माद से भरा था मन
भूल गई थी,
वृक्ष जब बड़ा होता है,
दुनिया को छाँव देता है,
किन्तु उसका मूल आधार,
समय के काल चक्र के साथ,
अंधकार मे भी,
सुख की खोज में,
धरती की गोद मे,
ना जाने कितने दुःख,
कितनी आशाएं,
अपने अन्तःकरण छुपाये,
लुप्त हो जाता है,
सदा के लिए।
तब मूल ने निनाद किया
इस अंधेरे मे अकेले दम घुटता है,
मेरी सुध कब लोगे।
वृक्ष बोला
तुम तो मेरी आधार शिला हो,
तुम्हें नहीं है डगमगाना,
तुम जितनी गहराई मे जाती हो,
मैं उतना ही ऊंचा उठता हूं,
मुझे अपार शिखर को छूने दो।
वह चुप रही
सहनशीलता की मूरत बन कर,
धरती की गोद में समा गई,
आधार शिला ही बन कर रह गई।
आधार शिला ही बन कर रह गई।