Monday, 15 January 2018

महकता हुआ इक हवा का झोंका

महकता हुआ इक हवा का झोंका आया,
खुशबू कितने फूलों की लाया,
पर मैं तो खडी रही हतस्तब्ध,
मैं भ्रमित हूँ या कोई झोंका हवा का आया?

खिलखिलाकर जब उसने याद दिलाया,
खुली आँखों से सोयी,
जैसे स्वपन हो कोई,
उसे अपने सन्मुख तब मैंने पाया।
कितनी मधुर थी वो संध्या की बेला,
जब उसने मुझे नानी कह कर बुलाया।

तुम्हारा लड़खड़ाते हुए भाग के आना,
नानू से नानी की शिकायत करना,
रसोई में ड़ब्बे बरतनों को खिलौंना बनाना,
खिलखिलाना भाग के गोदी में आना,
बहुत याद आता है ओ मेरी गुड़िया,
तेरा खिलखिलाना।

बहुत सलीके से रख्खा है घर अब,
नहीं कुछ इधर से उधर होती है अब,
आओ ना मिल कर खेलैंगे हम तुम,
घर को मैदान बनाएंगे हम तुम,
'मिकू किधर है' की पुकार लगाऊंगी मैं ,जब
मेरे पास भाग कर आओगी तुम,
खिलखिलाओगी तुम।

नानू नानी याद करते बहुत हैं,
अब जल्दी से आओ,
मिहिका वह हवा का झोंका पुनः ले के आओ।
पुनः ले के आओ, पुनः ले के आओ।
इंतजार करती हुई
तुम्हारी नानी।


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